नमक का दरोगा ( Namak Ka Daroga Kahanee):

“नमक का दरोगा” कहानी मुंशी प्रेमचंद की बहुचर्चित कहानियों में से एक है इस कहानी के माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश कालिन भारत के सामाजिक, प्रशासनिक न्यायिक एवं पारिवारिक व्यवस्था का सजीव चित्र प्रस्तुत किया है। एक छोटे कलेवर की कहानी में सीमित पत्रों एवं घटनाओं के द्वारा उन्होंने तत्कालीन समाज के सभी पहलुओं की यथार्थ और प्रभावशाली चित्र प्रस्तुत किया है।
Namak Ka Daroga Kahanee
नमक का दरोगा कहानी के संगठनात्मक तत्वों की दृष्टि से प्रस्तुत कहानी का स्वरूप इस प्रकार है:

“नमक का दरोगा” कहानी का कथावस्तु:

प्रस्तुत कहानी का कथानक एक निश्चित उद्देश्य की दिशा में यथार्थ घटनाओं एवं पात्रों के माध्यम से विकसित होता है या कथानक तत्कालीन सामाजिक न्याय एवं पारस्परिक व्यवस्था का सजीव चित्रण करते हुए असत्य पर सत्य की विजय के आदर्श को उद्घाटित करता है कहानी के कथानक में घटना चरित्र एवं भाव तीनों का श्रेष्ठ समन्वय हुआ है नमक का दरोगा एक ऐसे युवक बंशीधर की कहानी है जो परिवार की दैनिक आर्थिक स्थिति में नमक विभाग में दरोगा का पद प्राप्त करता है उसके ऊपर आर्थिक उत्तरदायित्व है और परिवार की आर्थिक उन्नति के लिए नैतिक दायित्वों के त्याग हेतु पिता का दबाव भी फिर भी वह जमींदार पंडित आलोक देओल की अवैध नमक की गाड़ियां हिरासत में ले लेता है तत्कालीन वरिष्ठ प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था उसको कर्तव्य पालन के लिए पुरस्कृत करने के बजाय सेवानिवृत्त कर देती है न्याय एवं कर्तव्य का पकड़ने के लिए उसे अपने पिता के को तथा परिवार की उपेक्षा का शिकार भी होना पड़ता है यहां तक कि लेखक ने कथानक में सत्य के मार्ग पर चलने वाली कठिनाइयों का चित्र प्रस्तुत किया है और बंशीधर के रूप में आदर्श चरित्र को सामने रखा है नमक का दरोगा कहानी के कथानक का अंत सर्वाधिक महत्वपूर्ण है जो लेखक के उद्देश्य को स्पष्ट करता हुआ कहानी को बना देता है सेवानिवृत्त होकर घर लौट आया है जहां वह अपने पिता एवं परिवार की उपेक्षा तथा लांछन से प्रताड़ित है तभी पंडित अलोपीदीन वहां आते हैं और उस अपनी आजाद का स्थाई प्रबंधक नियुक्त करते हैं इस रूप में कथानक का समापन स्पष्ट करता है कि यदि पथ पर चलने वाला कठिन एवं अव्यवस्था के कारण प्रताड़ित होता है फिर भी उसका प्रभाव बहरा पड़ता है और एक दिन सत्य की ही होती है असत्य पराजित होता है। 
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नमक का दरोगा कहानी का शीर्षक:

नमक का दरोगा शीर्षक कथानक के अनुरूप है तथा उसके संपूर्ण भाव एवं उद्देश्य को स्पष्ट करता है इस कहानी के सभी भाव बंशीधर के नमक का दरोगा वाले रूप पर ही आधारित है अतः कहानी का शीर्षक कथानक के उद्देश्य एवं भाव को पूर्णतया स्पष्ट करता है। 
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