गाजीपुर: उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में स्थित एशिया का सबसे बड़ा अफीम उत्पादन केंद्र न केवल एक आर्थिक शक्ति थी, बल्कि भारत की औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी माना जाता था. इस कारखाने की स्थापना 1820 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा गंगा के किनारे की गई थी. लगभग 206 साल पुरानी और 45 एकड़ में फैली इस फैक्ट्री ने गाज़ीपुर को पहचान दिलाई. ब्रिटिश सरकार ने किसानों को अफीम की खेती के लिए मजबूर किया, जिससे वे सस्ते दामों पर कच्चा माल उपलब्ध कराते थे. और ब्रिटिश व्यापारियों को भारी मुनाफा होता था.
ब्रिटिश काल के दौरान कई लेखकों ने गाज़ीपुर के अफीम कारखाने का जिक्र किया है. प्रसिद्ध लेखक रुदयार्ड किपलिंग ने 1888 में गाज़ीपुर का दौरा कर इसे “अफीम मिंट” कहा, जो इस स्थान के ब्रिटिश सरकार के लिए महत्व को दर्शाता है. इसके अतिरिक्त, समकालीन लेखक अमिताव घोष ने अपनी पुस्तक Sea of Poppies में गाज़ीपुर की समृद्ध पॉप्पी फसलों और स्थानीय श्रमिकों की कठिनाइयों का उल्लेख किया है. यह उपन्यास ब्रिटिश शासन के दौरान अफीम व्यापार के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को उजागर करता है.
अंतरराष्ट्रीय संबंध और सामाजिक प्रभाव
अफीम कारखाने के चलते गाज़ीपुर का अंतरराष्ट्रीय संबंध मजबूत हुआ, लेकिन इसका स्थानीय श्रमिकों और किसानों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा. अफीम की खेती और उत्पादन में लगे किसानों और श्रमिकों को कम वेतन पर अधिक काम करना पड़ता था. ब्रिटिश साम्राज्य के अफीम व्यापार ने चीन में अफीम युद्धों (Opium Wars) को जन्म दिया, जिससे गाज़ीपुर का यह कारखाना अंतरराष्ट्रीय विवादों का केंद्र बन गया.
वर्तमान में अफीम कारखाने की स्थिति
समय के साथ भारत में अफीम उत्पादन का तरीका बदल गया. पहले किसानों को अफीम की खेती के लिए लाइसेंस मिलता था, जिससे उन्हें मुनाफा होता था. अब राजस्थान और मध्य प्रदेश से अफीम के कंटेनर गाज़ीपुर लाए जाते हैं. फैक्ट्री अब पूरी तरह से सरकारी निगरानी में है और औषधीय उपयोग के लिए अफीम का उत्पादन करती है. इसका उपयोग मॉर्फिन, कोडीन और अन्य दर्द निवारक दवाओं के निर्माण में किया जाता है.
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FIRST PUBLISHED : October 9, 2024, 09:50 IST